
✨ चंदेरी साड़ी: भारत की बुनाई कला का अनमोल रत्न ✨
भारत की पारंपरिक बुनाई और वस्त्रकला की समृद्ध धरोहर में चंदेरी साड़ी का नाम अत्यंत गर्व से लिया जाता है। मध्यप्रदेश के अशोकनगर और आसपास के चंदेरी क्षेत्र में बनने वाली यह साड़ी अपने अद्भुत डिज़ाइन, हल्केपन और पारदर्शी बनावट के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
🌿 इतिहास और उत्पत्ति
चंदेरी बुनाई की परंपरा लगभग 11वीं शताब्दी से चली आ रही है। इतिहासकार मानते हैं कि बुंदेलखंड और मालवा क्षेत्र के शासकों के संरक्षण में यह कला फली-फूली। मुगल काल में चंदेरी साड़ी को शाही परिवारों और रानियों की पसंद माना जाता था। उस समय से ही यह साड़ी “राजसी परिधान” के रूप में जानी जाती है।
🧵 बुनाई की विशेषताएँ
चंदेरी साड़ियों की पहचान उनकी बारीक बुनावट और झीनी पारदर्शिता है।
इन्हें कॉटन, सिल्क और ज़री (सोने-चाँदी की तार) से तैयार किया जाता है।
साड़ी के पल्लू और बॉर्डर पर ज्यामितीय डिज़ाइन, बूटे, पंखुड़ियाँ और पारंपरिक आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
इसका कपड़ा हल्का और मुलायम होता है, जो गर्मियों में भी आरामदायक रहता है।
🌸 चंदेरी साड़ियों के प्रकार
- चंदेरी सिल्क – शाही अंदाज़ और चमक लिए हुए।
- चंदेरी कॉटन – बेहद हल्की और दैनिक उपयोग के लिए उपयुक्त।
- चंदेरी सिल्क-कॉटन मिक्स – परंपरा और आधुनिकता का संगम।
👑 आधुनिक फैशन में चंदेरी
आज चंदेरी साड़ी केवल पारंपरिक अवसरों तक सीमित नहीं है। बॉलीवुड से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक, डिज़ाइनर्स इस साड़ी को नए अंदाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। शादी-ब्याह, त्यौहार और ऑफिस वेयर तक में इसकी माँग तेजी से बढ़ रही है।
🌍 चंदेरी की वैश्विक पहचान
आज चंदेरी हैंडलूम को GI टैग (भौगोलिक संकेत) प्राप्त है, जिससे इसकी मौलिकता और परंपरा को संरक्षण मिला है। भारत सरकार और फैशन डिज़ाइनर्स इस कला को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में जुटे हैं।
✨ निष्कर्ष:
चंदेरी साड़ी केवल एक परिधान नहीं, बल्कि भारत की शिल्पकला, परंपरा और इतिहास का प्रतीक है। यह नारी की सुंदरता और गरिमा को और भी निखार देती है। चंदेरी का हर धागा बुनकरों की मेहनत और विरासत की कहानी कहता है।
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